चंडीगढ़: (दलजीत अमी) हरियाणा के नए गवर्नर नामजद होने और अकाल तख़्त की जथेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह दुआरा हुक्मनामा जारी किआ जाने की बाद पंजाब की पंथक राजनीती में आये भूचाल को िवराम लग गया लगता है. ज्ञानी गुरबचन सिंह के हुक्मनामे की बाद सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल ने अमृतसर में रविवार को होने वाली पंथक कांफ्रेंस रद्द कर दी है. दूसरी तरफ हरियाणा के सिखों ने भी करनाल 27 में जुलाई को होने हरियाणा सिख कन्वेंशन रद्द कर दी है. ज्ञानी गुरबचन सिंह ने हरियाणा के लिए अलग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मुद्दे पर सब कन्वेंशनों को रद्द करने का हुक्मनामा जारी किआ है. दूसरी तरफ हरियाणा के नामजद गवर्नर कप्तान सिंह सोलंकी ने बयान दिए है कि हरियाणा विधान सभा द्वारा पास किए गए एक्ट पर केंद्र सरकार की राये की मुताबक नज़रसानी की जानी चाहिए।
हरियाणा के लिए अलग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को विधान सभा में बिल द्वारा कानून का रूप दे दिया है. कई सालों की इस मांग के मान लिए जाने से मामला सुलझने की जगह उलझ गया लगता है. पंजाब और हरियाणा के बीच का तनाव केंद्रीय सरकार से दखलंदाज़ी की मांग तक पहुँच गया है. इस के साथ ही पंजाब में पंथक सियासत को नया मुदा मिल गया है जिसमें सिखों से संबंध रखने वाली हर संस्था तथा संगठन की दिलचस्पी सामने आ रही है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी तथा सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल ने हरियाणा के लिए अलग कमेटी का विरोध किया है. पंजाब के मुख्य मंत्री प्रकाश सिंह बादल पंथक राजनीति और धर्म युद्ध मोर्चा वाली शब्दावली में बात कर रहे हैं पर इस बार जाने पहचाने शब्दों के मायने जाने पहचाने नहीं है. पंजाब की सिख संस्थाएं और संगठन एकमत नहीं हैं तथा हर तरफ से सिखों के हितों की बात को पंजाब के सियासी माहौल से जोड़ कर देखा जा रहा है. एक तरफ प्रकाश सिंह बादल मुख्य मंत्री का पद तियाग कर मोर्चा लगाने की बात कर रहे है तो दूसरी तरफ उनकी इस कार्यवाही को लोक सभा चुनाव में खोये जनादार को वापस खीचने की कवायद बताया जा रहा है.
हरियाणा के सिख कई सालों से मांग कर रहे थे की राज्य के गुरुद्वारों का प्रभंध सुधारने के लिए अलग कमेटी की ज़रूरत है क्योंकि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रभंधक कमेटी इन्हें नज़रअंदाज़ कर रही है. यह बात १४ साल से चल रही है. गुरुद्वारों के प्रभंध को लेकर ही लम्बे संघर्ष के बाद 1925 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रभंधक कमेटी की स्थापना हुई थी. गुरुद्वारा सुधार लहर को महात्मा ग़ांधी ने आज़ादी की लड़ाई की पहली जीत करार दिया था. कई सालों के मोर्चों के बाद गुरुद्वारों को महंतों के कब्ज़े से छुड़ाया गया था. उस वक्त पंजाब काउंसिल ने सिख गुरुद्वारा एक्ट 1925 बनाया जिसके तहत ऐतहासिक गुरुद्वारों का प्रभंध शिरोमणि गुरुद्वारा प्रभंधक कमेटी को दिया गया. देश के वँटवारे के बाद 1947 से पाकिस्तान में स्थित गुरुद्वारों का प्रबंध शिरोमणि गुरुद्वारा प्रभंधक कमेटी से छिन गया. दूसरे देश में हो जाने तथा उस देश की साथ अच्छे रिश्ते न होने के कारण सिखों की रोज़ाना की अरदास में यह सदमा जुड़ गया. तभी से सिखों की अरदास में 'जिन गुरूधामों को पंथ से विछोड़ा गया है उनके दर्शन-दीदार' की इच्छा प्रकट की जाती है. दिल्ली सिख गुरुद्वारा एक्ट 1971 के तहत दिल्ली के गुरुद्वारों का प्रभंध दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी को दे दिया गया. खालसा पंथ के 300 साल 1999 में पुरे हुए तो पाकिस्तान में गुरुद्वारों का प्रबंध देखने के लिए वहां की सरकार ने पाकिस्तान गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बनाने का फैसला किया.
इस दौरान शिरोमणि गुरुद्वारा प्रभंधक कमेटी का घेरा पंजाब, हरियाणा और हिमाचल तक सिमट कर रह गया. हरियाणा से अलग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रभंधक कमेटी मांग हुई तो राजस्थान से भी यहीं मांग उठी. पंजाब में भी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रभंधक कमेटी की कारगुज़ारी पर सवाल होते रहे हैं. इस के काम में शिरोमणि अकाली दल की दखलंदाज़ी तथा इस के राजनैतिक इस्तेमाल का सवाल बार-बार उठता रहता है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर शिरोमणि अकाली दल का कब्ज़ा है. इन हालत में गुरुद्वारों के प्रबंध को सुधारने तथा गुरुद्वारों की कमाई का सही इस्तेमाल करने के सवाल अलग-अलग संस्थाए और संगठन उठाते रहते हैं. अब हरियाणा के लिए अलग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का सवाल हर संस्था और संगठन के लिए अहम है. शिरोमणि अकाली दल ने 'पंथ को खतरा' और 'सिखों के मामलों में दखलंदाज़ी' की दलील देनी शुरू कर दी है. अब तक अकाली मोर्चों में कहा जाता था कि 'एकता' और 'अखंडता' के नाम पर दिल्ली सरकार 'सिखों के मामलों में दखलंदाज़ी' करती है. इस बार कहा जा रहा है कि 'दिल्ली सरकार हमारे साथ है' और हरियाणा ने देश की 'अखंडता' को तोड़ने का काम किया है. प्रकाश सिंह बदल कह चुके हैं कि 'पंथ को खतरा है' और 'धर्मयुद्ध मोर्चा' का समय आ गया है.
पंजाब के धर्मयुद्ध मोर्चों में तमाम सिख संस्थाए और संगठन भाग लेते रहें हैं. इस बार ज़यादातर संस्थाए और संगठन अलग-अलग सोच रखते है. चंडीगढ़ में दस सिख संस्थाओं ने प्रस्ताव पास किया है कि हरियाणा के गुरुद्वारों का प्रबंध वहां के सिखों को दिए जाने से सुधरेगा. इन संस्थाओं में भाई गुरदास इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज, केंद्रीय श्री गुरु सिंह सभा, शरोमणि खालसा पंचायत तथा गुरुमत मिशनरी कालज आदि शामिल हैं जो धर्मयुद्ध मोर्चाओं का हिस्सा रही हैं. शिरोमणि अकाली दल अमृतसर के नेता सिमरनजीत सिंह मान का कहना हैं कि पंजाब तथा हरियाणा के सिख भाई-भाई हैं. सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल में भी अभी तक कोई सहमति नहीं है. वरिष्ठ नेता मंजीत सिंह कलकत्ता का कहना है कि सिखों का सिखों के ख़िलाफ़ मोर्चा जायज़ नहीं है. गर्म दलिया सिख संस्थाओं में माने जाते शिरोमणि अकाली दल पंच प्रधानी तथा दल खालसा हरियाणा के लिए अलग कमेटी का समर्थन कर रहे है. संत समाज तथा दमदमी टकसाल में एकमत नहीं बन पाया है. दमदमी टकसाल तथा यूनाइटेड सिख मूवमेंट के नेता मोहकम सिंह धर्मयुद्ध मोर्चों वाले रवायती मुद्दों को लेकर सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल के ख़िलाफ़ चार अगस्त को चंडीगढ़ में प्रदर्शन करने वाले हैं और बह हरियाणा के लिए अलग कमेटी की हमायत करते हैं.
इसी दौरान सिख वुद्धिजीविओं की राय भी बंटी हुई है. सिख इतहास पर काम करनी वेले इतहास्कार प्रो. गुरदर्शन सिंह ढिल्लों कहते हैं, "धर्मयुद्ध मोर्चे जैसी बात प्रकाश सिंह बादल के लिए धार्मिक और राजनैतिक स्तर पर आत्महत्या है. सिख पंथ उसके साथ नहीं है क्योंकि अलग कमेटी की मांग की लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रभंधक कमेटी का भ्रिस्टाचार ज़िम्मेदार है. इससे भी आगे अलग कमेटी पंथ की संघीय ढांचे की मांग का हिस्सा भी है." शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मेंबर रहे अमरिंदर सिंह इस सम्भाभित मोर्चे को इतहास के साथ जोड़ कर देखते हैं, "यह ग़ांधी परिवार और सिखों की पुरानी लड़ाई की अगली कड़ी है. हूडा ने अलग कमेटी बनाने का काम दस जनपथ के इशारे पर किया है. इस मोर्चे के साथ सिख पंथ की भावनाएं जुडी हुई हैं." कभी सिख मिलिटेंट मूवमेंट का हिस्सा रहे सुरिंदर सिंह किशनपुरा का कहना है, "अलग कमेटी से सिख पंथ कोई दो नहीं हो जाता। यह प्रबंध का मसला है. गुरुद्वारों का प्रबंध अलग कमेटी से सुधरेगा। दिल्ली या पाकिस्तान की अलग कमेटिओ ने पंथ को कहाँ वांटा है? अलग कमेटी का विरोध कर रहे लोग गुरु की गोलक तथा अपनी राजनीती को धयान में रख कर सब कुछ कर रहें हैं." इन सभी बातों से लगता है कि आने वाले दिन पंजाब की पंथक राजनीती के लिए काफी दिलचस्प रहेंगे। देखने वाली बात यह रहेगी कि अकाल तख़्त के जत्थेदार की हुक्मनामे का असर कन्वेंशनों को रद्द करने तक ही सीमत रहेगा या हरियाणा के नए गवर्नर के साथ यह मुदा ठंडे बस्ते में चला जाएगा. इस बार हरियाणा के हवाले से केंद्र तथा राज्य की संबंदों पर चर्चा का गरमाए रहना तय लगता है.
(This report was published in BBC Hindi. http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/07/140726_gurudwara_prabandhak_committe_dispute_vs.shtml)
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